देश की अर्थव्यवस्था में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है, निकट भविष्य में भारतीय अर्थव्यवस्था विकट संकट की स्थिति का सामना कर सकती है. रिजर्व बैंक ने सरकार से और अधिक नोट छापने की मना कर दी है. इसका मतलब है मार्केट में पहले से ही अत्यधिक नोट सप्लाई हो चुके हैं. वर्तमान संख्या से और अधिक संख्या में नोट छपेंगे तो भारतीय मुद्रा की मार्केट वैल्यू बुरी तरह से गिर सकती है. कुछ दिन पहले वियतनाम में भी इसी स्थिति का सामना करना पड़ा था. वहां भी सरकारी मुद्रा की वैल्यू इतनी बुरी तरह से गिरी थी कि एक टाइम का खाना खाने के लिए भी, जेब भरके नोट चाहिए होते थे. वियतनाम अभी भी मुद्रा संकट से जूझ रहा है. प्रथम विश्वयुद्ध के बाद जर्मनी में तो भी ऐसी स्थिति आई थी कि सूटकेस बराबर नोट के बदले भी एक टाइम का खाना नहीं मिलता था.
सरकारी घाटे की भरपाई जब अधिक नोट छापकर की जाती है तो मार्केट में नोट की संख्या अधिक बढ़ जाती है. इससे रुपए की कीमत भयंकर रूप से गिरती है. अर्थव्यवस्था में ऐसी स्थिति को हाइपर इंफ्लेशन कहते हैं। हाइपर इन्फ्लेशन की स्थिति में रुपए की कीमत इतनी भी गिर कि 20 हजार रुपए के बदले में एक रोटी भी न मिलेगी.
आप इसपर हंस सकते हैं, लेकिन मामूली सी इकोनॉमिक्स पढ़े लोगों को भी पता है, कि सरकारी घाटे की भरपाई कभी, नए नोट छापकर नहीं करनी चाहिए.
किया जा सकता है लेकिन ऐसा केवल अंतिम विकल्प के रूप में ही करना चाहिए. इससे पहले सरकार को मार्किट से पैसे लेने चाहिए. जैसे गवर्नमेंट सिक्युरिटी बगैरह से. इसमें क्या होता है कि सरकार जनता से सरकारी बांड के जरिए उधार लेती है. जो पैसा ऑलरेडी मार्किट में जनता के पास होता है, उसी का उपयोग सरकारी घाटे की भरपाई के लिए किया जाता है. इस विकल्प में नए नोट नहीं छापने होते.
न अधिक नोट छपेंगे, न नोटों की वैल्यू कम होगी. इसके अलावा सरकार अपनी संपत्ति बेचकर भी सरकारी राजस्व की भरपाई कर सकती है. जिस रफ्तार से सरकार एलआईसी, एयर इंडिया, रेलवे बगैरह को प्राइवेट हाथों में बेच रही है. उससे पता चल रहा है सरकार ऑलरेडी इस विकल्प पर काम कर चुकी है.
ये न अधिक कारगर साबित हुआ है, और न ही ये एक सस्टनेबल सॉल्यूशन है.
साफ है सरकार, सरकारी घाटे को पूरा करने के अंतिम विकल्प यानी नए नोट छापने पर काम करना चाहती थी, जिससे फिलहाल रिजर्व बैंक ने इनकार।कर दिया है.
यानी अर्थव्यवस्था शीघ्र ही बड़े संकट में आ सकती